“”कथित है कि शास्त्र अनन्त है और उसमे स्थित अमूल्य ज्ञान के ऊपर सबका अधिकार है, मानव मात्र का अधिकार है । ऐसे ही श्रद्धा उत्पन्न होने के कारण कुछ दिन पहले सामुद्रिक शास्त्र का अध्ययन प्रारम्भ किया । पहले यही समझता था कि सामुद्रिक शास्त्र केवल हस्तरेखा में सीमित है , किन्तु बाद में पता चला की इसमें कपाल पठन, पदरेखा पठन एवं शारीरिक गठन का अनुध्यान आदि अनेकानेक शाखा हैं । बहुत लोगों को इन चीजों पर विश्वास नहीं होता । किन्तु इसमें चिंता की कोई बात नहीं । सबके अपने सोचने के माध्यम होते हैं और जीवन को देखने के सूत्र । जो समझते हैं शास्त्रों को उनके लिए विज्ञान का बहुत बड़ा भण्डार होते हैं शास्त्र । जिस विषयों पर अबतक विज्ञान ने शोध नहीं किया वैसी अनेकानेक सिद्धांत हमारे शास्त्रों में उल्लेखित है । विज्ञान उपकरणों का सहारा लेता है , और धीरे धीरे आज का विज्ञान उस और गति कर रहा है एवं एक दिन आयेगा जब विज्ञान भी प्रमाणित करेगा इन तथ्यों को । हमारे शास्त्र इस जगत के सूक्ष्म सिद्धांतों पर पर्यवेसित हैं और हर एक चीज़ का अपना एक विज्ञान होता है । एक आधुनिक वैज्ञानिक जिसको इतिहास में उतना ऊँचा स्थान शायद नहीं मिल पाया (नाम ध्यान में नहीं) , उस महानुभव ने कहा था कि अगर ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जान ना है तो स्पंदन, तरंग आदि तत्त्वों का सहारा लेना जरूरी है । ध्वनि, ज्योति, स्पंदन, विद्युत् चुम्बकीय तरंगों आदि तत्त्वों को उपयोग कैसे किया जाए उसके अनेक पद्धति प्राच्य के मनीषियों ने हजारों वर्ष पूर्व विकशित किये और उसकी एक पूरी योजनावद्ध अभ्यास पद्धति हमारे लिए छोड़ गए । यह सब पद्धतियां कालान्तर में परंपरा बन गयी एवं कुछ विलुप्त हो गईं । ऐसी पद्धतियों में से एक है “हस्तरेखा विज्ञान” । ब्रह्मांडीय जितने भी वस्तु अथवा पिंड हैं तथा हमारे सौर मंडल में भी जो ग्रह तथा इसके आस पास जो नक्षत्र हैं, इन सब में से निरंतर एक विद्युतचुम्बकीय तरंग निकलता रहता है । यहाँ तक की मनुष्य के शरीर से भी । और यही तरंग जब आपस में मिलते हैं तो इनसे अलग अलग प्रभाव उत्पन्न होते हैं । सौर जगत में घटने वाली घटनाओं से पृथ्वी का वातावरण तथा जीवजगत प्रभावित होता है , इसको आज का विज्ञान भी स्वीकार करता है । यह ग्रह नक्षत्र आदि के जो विद्युतचुम्बकीय तरंगे हैं जो वातावरण में प्रवाहित हो रही हैं सूक्ष्मरूप से यह मनुष्य के चेतना के ऊपर भी प्रभाव डालती हैं । यह जो नवग्रह की बात हमारे शास्त्रों में है , यह ब्रह्मांडीय पिंडों से निकलने वाली तरंगे अलग अलग ढंग से स्पंदित होती हैं । तथा यह मनुष्य के चेतना के अलग अलग आयामों को नियंत्रित करती हैं । यह निर्धारित होता है कि मनुष्य की अपनी विद्युतचुम्बकीय तरंग के स्पंदन ने उन ग्रहों से आने वाले तरंग के स्पंदन के किस आयाम से अपने आप को अनावृत (expose) किया । (To which cosmic frequencies the individual frequency has exposed ) । कोई भी घटना हो प्रकृति में उसके चिन्ह हमको प्रकृति में ही मिलते हैं । यह प्रकृति के हर सजीव में अभिव्यक्त होती है । एक वृक्ष के भीतरी अस्तित्व में क्या चल रहा है इसकी एक सूक्ष्म निशानी वृक्ष के बाहर भी अभिव्यक्त जरूर होगी । और इसको केवल एक उस विज्ञान को पढ़ने वाला व्यक्ति ही अच्छे से समझ सकता है । ऐसे ही मनुष्य के शरीर में घटने वाली जो घटनाएं हैं उनके चिन्हों को देख के रोग निर्धारण की विधि तथा आगे क्या होने वाला है उसकी संभावना एवं उसकी उचित चिकित्सा विधि विकशित हुई । ठीक उसी तरह चेतना में जो हलचल है और उस से जीवन कैसे प्रभावित हो रहा है या आगे होगा उसके चिन्हों को भी पहचान ने की विधि विकशित हुई , जिसे सामुद्रिक शास्त्र कहते हैं । उसी का एक शाखा है हस्तरेखा विज्ञान । हाथ के चिन्हों से मनुष्य के अस्तित्त्व में घटने वाली घटनाओं की पूर्व सुचना । हस्त रेखा विज्ञान में मनुष्य गर्भाधान से लेकर जन्म तक किन तरंगों के प्रति अपने को अनावृत (expose) किया और उस से उसकी चेतना किस तरह से प्रभावित हुई वह उसके शरीर में छप जाते हैं । हाथ क्यों की कर्मेद्रिय हैं जिसके द्वारा हम कर्म में प्रवृत्त होते हैं , हस्त चेतना में उठी विचार को कार्यान्वित करने के माध्यम ही हैं ।इसलिए इन निशानियों के विकशित होने के प्रमुख माध्यम बने हमारे हाथ । हमारे हाथ एक Receiver की तरह हैं जो ब्रह्मांडीय तरंगों को अपनी और खिंचती हैं तथा शरीर के ऊर्जा को कुछ हद तक बाहर फेंकती हैं । अलग अलग ग्रहों के तरंगों को पकड़ने के लिए अलग अलग capacity के receiver की आवश्यकता है जो की हमारे अंगुलिया एवं हस्त करती हैं । हस्त को ग्रहों के आधार पर बाँट दिया गया कि कौनसा भाग किस ग्रह के तरंगों के प्रति संवेदनशील है तथा उसको खींचता है । उस हिसाब से हाथ को विभाजित करदिया गया । हर ग्रह का एक क्षेत्र निर्मित हो गया एवं एक ग्रह का प्रभाव जान ने के लिए सीधा उसके क्षेत्र को देख कर उसमे जो चिन्ह हैं उसे समझकर क्या प्रभाव होने वाला है इसकी पूरी विधि विकशित हो गयी ।बृद्धाङ्गुली और उसके नीचे का क्षेत्र शुक्र का, तर्जनी तथा उसके नीचे वृहस्पति का, मध्यमा और उसके नीचे शनि, अनामिका एवं उसके नीचे सूर्य, कनिष्ठा और उसके नीचे का भाग वुध का । वुध क्षेत्र के नीचे तथा वृहपति क्षेत्र के नीचे मंगल का स्थान । वुध क्षेत्र के नीचे जो मंगल हुआ उसके ठीक नीचे शुक्र क्षेत्र के विपरीत चंद्रमा का क्षेत्र, हाथ के विचों विच राहु एवं मणिबन्ध में केतु का स्थान निर्धारित हुआ ।धन्यभाग हैं हम लोग की हमारे पूर्वज सूत्र माध्यम से इन दैवी ब्रह्मांडीय विज्ञान को हमारे लिए छोड़ गए । इन चीजों को समझने के लिए गहन अध्ययन तथा स्वाध्याय की आवश्यकता है । अभी प्रारंभिक अवस्था में जितना समझ में आया उस हिसाब से लिखने का एक छोटा सा प्रयास किया । इसके अनेक आयाम हैं जिनके प्रति अभी स्वयं को अनभिज्ञ अनुभव करता हूँ , फिरभी जो थोड़ा वहुत स्वाध्याय से मन में विचार उठा उसको भाषा में प्रकाशित करने की चेष्टा की है । लक्ष्य है कि कैसे आधुनिक लोग शास्त्रों में उल्लेखित प्राचीन धरोहर को समझें और उस विज्ञान प्रति पुनः प्रवृत्त हों । कोई भूल हुई हो तो क्षमा प्रार्थना करते हुए इस लेख को विराम देता हूँ । “””
Very good initiative 👍
बहुत अच्छी जानकारी है।