दशविध ब्राह्मण (दश प्रकार के ब्राह्मण) [अत्रिस्मृति अनुसार]

देव , मुनि , द्विज , राजा , वैश्य , शूद्र , निषाद , पशु , म्लेच्छ , चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं ।

जो प्रतिदिन संध्या , स्नान , जप , होम , देवपूजा, अतिथिकी सेवा और जो वैश्वदेव करते है उनको “ देव ” ब्राह्मण कहते हैं अर्थात् इन सब कर्मों के करनेवाले ब्राह्मणोंकी देव संज्ञा है ।

 शाक , पत्ते , फल , मूलको भक्षण करनेवाला और जो वनमें निवासकर नित्य श्राद्ध में रत , रहता है ऐसे ब्राह्मणको “ मुनि ” कहा है । 

जो प्रतिदिन वेदान्तको पढ़ता है और जिसने सबका संग त्यागदिया है , सांख्य और योग के ज्ञानमें जो तत्पर है उस ब्राह्मणको “ द्विज ” कहा है ।

 जिसने रणभूमिमें सबके सन्मुख धन्वीयोंको युद्धके आरंभ में जीता हो और अस्त्रों से परास्त किया हो उस ब्राह्मणको “ क्षत्री ” / ” राजा ” कहते हैं ।

खेतीके कार्यमें रत और गौ- पालनमें लीन , और वाणिज्यके व्यवहार में जो ब्राह्मण तत्पर हो उसको ‘ वैश्य ‘ कहते हैं ।

 लाख , लवण , कुसुंभ , घी , मिठाई दूध और मांसको जो ब्राह्मण बेचता है उसको ‘ शूद्र ‘ कहते हैं ।

 चोर , तस्कर (बलपूर्वक दूसरेके धनको हरण करनेवाला) सूचक ( निकृष्ट सलाहका देनेवाला ) दंशक (कडवा बोलनेवाला) और सर्वदा मत्स्य मांसके लोभी ब्राह्मण को ” निषाद ” कहते हैं ।

जो ब्रह्मतत्त्व को न जानकर केवल यज्ञोपवीत के बलसे ही अत्यन्त गर्व प्रकाश करता है , इस पापसे उस ब्राह्मण को ‘ पशु ‘ कहते हैं ।

जो निःशंकभावसे ( पापका भय न करकै ) बावडी , कूप , तालाब , बाग , छोटा तालाव इनको बन्द करता है उस ब्राह्मणको ‘ म्लेच्छ ‘ कहा है ।

 क्रियाहीन ( संध्या इत्यादि नित्य नैमित्तिक कर्मोसे हीन ) , मूर्ख , सर्वधर्म ( सारे कर्तव्य कर्म / धृति आदि धर्म लक्षणों ) से रहित और सर्व प्राणियों के प्रति जो निर्दयता प्रकाश करता है उस ब्राह्मणको ‘ चांडाल ‘ कहते हैं ।

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