युधिष्ठिरने पूछा- पितामह ! पितरोंके लिये दी हुई कौन – सी वस्तु अक्षय होती है ? किस वस्तुके दानसे पितर अधिक दिनतक और किसके दानसे अनन्त कालतक तृप्त रहते हैं ?
भीष्मजीने कहा – युधिष्ठिर ! श्राद्धवेत्ताओंने श्राद्ध कल्पमें जो हविष्य नियत किये हैं , वे सब – के – सब काम्य हैं । मैं उनका तथा उनके फलका वर्णन करता हूँ , सुनो ॥
हे नरेश्वर ! तिल , ब्रीहि , जौ , उड़द , जल और फल – मूलके द्वारा श्राद्ध करनेसे पितरोंको एक मासतक तृप्ति बनी रहती है ।
मनुजीका कथन है कि जिस श्राद्धमें तिलकी मात्रा अधिक रहती है , वह श्राद्ध अक्षय होता है । श्राद्ध सम्बन्धी सम्पूर्ण भोज्य पदार्थोंमें तिलोंका प्रधानरूपसे उपयोग बताया गया है ।
यदि श्राद्धमें गव्य पदार्थ दान किया जाय तो उससे पितरोंको एक वर्षतक तृप्ति होती बतायी गयी है । गव्य पदार्थ का जैसा फल बताया गया है , वैसा ही घृतमिश्रित खीरका भी समझना चाहिये ।
युधिष्ठिर ! इस विषयमें पितरोंद्वारा गायी हुई गाथा जिसका विज्ञ पुरुष गान करते हैं, पूर्वकालमें भगवान् सनत्कुमारने मुझे यह गाथा बतायी थी ।
पितर कहते हैं – ‘ क्या हमारे कुलमें कोई ऐसा पुरुष उत्पन्न होगा , जो दक्षिणायनमें आश्विन मासके कृष्णपक्षमें मघा और त्रयोदशी तिथिका योग होनेपर हमारे लिये घृतमिश्रित खीरका दान करेगा ?
अथवा वह नियमपूर्वक व्रतका पालन करके मघा नक्षत्रमें ही हाथीके शरीरकी छायामें बैठकर उसके कानरूपी व्यजनसे हवा लेता हुआ अन्न – विशेष चावलका बना हुआ पायस या लौहशाकसे विधिपूर्वक हमारा श्राद्ध करेगा ?
बहुत – से पुत्र पानेकी अभिलाषा रखनी चाहिये , उनमेंसे यदि एक भी उस गया – तीर्थकी यात्रा करे , जहाँ लोकविख्यात अक्षयवट विद्यमान है , जो श्राद्धके फलको अक्षय बनानेवाला है ॥
पितरोंकी क्षय तिथिको जल , मूल , फल , उसका गूदा और अन्न आदि जो कुछ भी मधुमिश्रित करके दिया जाता है , वह उन्हें अनन्तकालतक तृप्ति देनेवाला है ‘ ॥
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