इन्द्र कृत सुरभि स्तुति (श्रीमद्देवीभागवत से)

इन्द्र कृत सुरभि स्तुति (श्रीमद्देवीभागवत से)

एक समयकी बात है , वाराहकल्पमें भगवान् विष्णुकी मायासे देवी सुरभिने तीनों लोकोंमें दूध देना बन्द कर दिया , जिससे समस्त देवता आदि चिन्तित हो गये । ब्रह्मलोकमें जाकर उन्होंने ब्रह्माकी स्तुति की , तब ब्रह्माजीकी आज्ञासे इन्द्र सुरभिकी स्तुति करने लगे ॥

पुरन्दर उवाच 

नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः । 

गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदम्बिके ॥ 

नमो राधाप्रियायै च पद्मांशायै नमो नमः । 

नमः कृष्णप्रियायै च गवां मात्रे नमो नमः ॥

कल्पवृक्षस्वरूपायै सर्वेषां सततं परे।

क्षीरदायै धनदायै बुद्धिदायै नमो नमः ॥

शुभायै च सुभद्रायै गोप्रदायै नमो नमः । 

यशोदायै कीर्तिदायै धर्मदायै नमो नमः ॥

स्तोत्र श्रवणमात्रेण तुष्टा हृष्टा जगत्प्रसूः | 

आविर्बभूव तत्रैव ब्रह्मलोके सनातनी ॥

महेन्द्राय वरं दत्त्वा वाञ्छितं चापि दुर्लभम् । 

जगाम सा च गोलोकं ययुर्देवादयो गृहम् ॥

बभूव विश्वं सहसा दुग्धपूर्णं च नारद ।

 दुग्धं घृतं ततो यज्ञस्ततः प्रीतिः सुरस्य च ॥

इदं स्तोत्रं महापुण्यं भक्तियुक्तश्च यः पठेत् । 

स गोमान् धनवांश्चैव कीर्तिमान्पुत्रवांस्तथा ॥

स स्नातः सर्वतीर्थेषु सर्वयज्ञेषु दीक्षितः । 

इह लोके सुखं भुक्त्वा यात्यन्ते कृष्णमन्दिरे ॥

सुचिरं निवसेत्तत्र करोति कृष्णसेवनम् । 

न पुनर्भवनं तत्र ब्रह्मपुत्रो भवेत्ततः ॥

अर्थात्:-

पुरन्दर बोले- देवीको नमस्कार है , महादेवी सुरभिको बार – बार नमस्कार है । हे जगदम्बिके ! गौओंकी बीजस्वरूपिणी आपको नमस्कार है । राधाप्रियाको नमस्कार है , देवी पद्मांशाको बार – बार नमस्कार है , कृष्णप्रियाको नमस्कार है और गौओंकी जननीको बार बार नमस्कार है । हे परादेवि ! सभी प्राणियोंके लिये कल्पवृक्षस्वरूपिणी , दुग्ध देनेवाली , धन प्रदान करनेवाली तथा बुद्धि देनेवाली आपको बार – बार नमस्कार है । शुभा , सुभद्रा तथा गोप्रदाको बार – बार नमस्कार है । यश , कीर्ति तथा धर्म प्रदान करनेवाली भगवती सुरभिको बार – बार नमस्कार है ।

इस स्तोत्रको सुनते ही जगज्जननी सनातनी देवी सुरभि सन्तुष्ट तथा प्रसन्न होकर उस ब्रह्मलोकमें प्रकट हो गयीं ।

देवराज इन्द्रको दुर्लभ वांछित वर प्रदान करके वे गोलोकको चली गयीं और देवता आदि अपने अपने स्थानको चले गये ।

हे नारद ! उसके बाद विश्व सहसा दुग्धसे परिपूर्ण हो गया । दुग्ध होनेसे घृतका प्राचुर्य हो गया और उससे यज्ञ होने लगा , जिससे देवताओंको सन्तुष्टि होने लगी ।

जो भक्तिपूर्वक इस परम पवित्र स्तोत्रका पाठ करता वह गौओंसे सम्पन्न , धनवान् , यशस्वी तथा पुत्रवान् हो जाता है । उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान कर लिया तथा वह सभी यज्ञोंमें दीक्षित हो गया । वह इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें श्रीकृष्ण के धाम में चला जाता है । वह वहाँ दीर्घकालतक निवास करता है और भगवान् श्रीकृष्णकी सेवामें संलग्न रहता है । उसका पुनर्जन्म नहीं होता , वह ब्रह्मपुत्र ही हो जाता है ॥

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