सच्चा उपवास Real Fasting
महाभारत अनेक शिक्षाओं और जीवन संबंधी गूढ़ रहस्यों से भरा हुआ है जो सर्वदा जीवन को देखने का एक नया दृष्टिकोण देता है । ऐसे ही उपवास के विषय में गंगापुत्र भीष्म एवं धर्मराज युधिष्ठिर के बीच हुए वार्तालाप का एक छोटा अंश प्रस्तुत है जिससे सच्चा उपवास क्या होता है, उसका ज्ञान होगा ।
मासपक्षोपवासेन मन्यते यत् तपो जनाः ।
आत्मतन्त्रोपघातस्तु न तपस्तत्सतां मतम् ।। ४ ।।
अर्थात् :- राजन् ! साधारण जन जो महीने – पंद्रह दिन उपवास करके तप मानते हैं, उनका वह कार्य धर्म के साधनभूत शरीर का शोषण करनेवाला है; अतः श्रेष्ठ पुरुषों के मत में वह तप नहीं है ।
त्यागश्च संनतिश्चैव शिष्यते तप उत्तमम् ।
सदोपवासी च भवेत् ब्रह्मचारी सदा भवेत् ।। ५ ।।
अर्थात् :- उनके मतमें तो त्याग और विनय ही उत्तम तप है । इनका पालन करनेवाला मनुष्य नित्य उपवासी और सदा ब्रह्मचारी है ।
अन्तरा प्रातराशं च सायमाशं तथैव च ।
सदोपवासी स भवेत् न भुङ्क्तेऽन्तरा पुनः ।।१०।।
युधिष्ठिर ! जो प्रतिदिन प्रातः कालके सिवा फिर शामको ही भोजन करे और बीच में कुछ न खाय, वह नित्य उपवास करनेवाला होता है ।
~ भीष्म, श्रीमहाभारते, शान्तिपर्वणि, मोक्षधर्मपर्वणि, अमृतप्राशनिको नाम एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः