श्राद्ध में पितरों के तृप्ति विषयक वर्णन [महाभारत अनुसार]

युधिष्ठिरने पूछा- पितामह ! पितरोंके लिये दी हुई कौन – सी वस्तु अक्षय होती है ? किस वस्तुके दानसे पितर अधिक दिनतक और किसके दानसे अनन्त कालतक तृप्त रहते हैं ? भीष्मजीने कहा – युधिष्ठिर ! श्राद्धवेत्ताओंने श्राद्ध कल्पमें जो हविष्य नियत किये हैं , वे सब – के – सब काम्य हैं । मैं उनका …

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श्राद्ध में पितरों के लिये प्रदान किये गये हव्य – कव्य की प्राप्ति का विवरण [मत्स्य पुराणोक्त]

ऋषियोंने पूछा – सूतजी ! मनुष्योंको ( पितरोंके निमित्त ) हव्य और कव्य किस प्रकार देना चाहिये ? इस मृत्युलोकमें पितरोंके लिये प्रदान किये गये हव्य कव्य पितृलोकमें स्थित पितरोंके पास कैसे पहुँच जाते हैं ? यहाँ उनको पहुँचानेवाला कौन कहा गया है ? यदि मृत्युलोकवासी ब्राह्मण उन्हें खा जाता है अथवा अग्निमें उनकी आहुति दे …

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दशविध ब्राह्मण (दश प्रकार के ब्राह्मण) [अत्रिस्मृति अनुसार]

देव , मुनि , द्विज , राजा , वैश्य , शूद्र , निषाद , पशु , म्लेच्छ , चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं । जो प्रतिदिन संध्या , स्नान , जप , होम , देवपूजा, अतिथिकी सेवा और जो वैश्वदेव करते है उनको “ देव ” ब्राह्मण कहते हैं अर्थात् इन सब कर्मों के …

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खेचरी मुद्रा

मुद्रैषा खेचरी प्रोक्ता भक्तानां अनुरोधतः । सिद्धिनां जननी ह्येषा मम प्राणाधिके प्रिये । निरन्तर कृताभ्यासम् पीयूषम् प्रत्यहं पीवेत् । तेन निग्रहम् सिद्धिस्यात् मृत्यु मातंग केशरी ।। अर्थात् – (शिव जी ने देवी से कहा) हे प्रिये ! भक्तों के अनुरोध के कारण ही मैंने अपने प्राणों से प्रिय इस खेचरी मुद्रा को प्रकाशित किया जो …

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श्रीगणेशगीता में योग

वरेण्य उवाच किं सुखं त्रिषु लोकेषु देवगन्धर्वयोनिषु । भगवन् कृपया तन्मे वद विद्या विशारद ।।२०।। अर्थ:- वरेण्य बोले – भगवन् ! तीनों लोकों तथा देवता और गंधर्व आदि योनियों में यथार्थ सुख क्या है ? हे विद्याविशारद ! कृपाकर आप यह मुझसे वर्णन कीजिये ।। श्रीगजानन उवाच आनन्दमश्नुतेऽसक्तः स्वात्मारामो निजात्मनि । अविनाशि सुखं तद्धि न …

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शिव संहिता में महामुद्रा

शिव संहिता में महामुद्रा महामुद्रां प्रवक्ष्यामि तन्त्रेऽस्मिन्मम वल्लभे । यां प्राप्य सिद्धाः सिद्धि च कपिलाद्याः पुरागताः ।। 26 ।। (शिवजी ने कहा) – हे प्रिये ! में इस तन्त्र में महामुद्रा की बात कहूंगा , जिसे प्राप्त करके कपिल आदि प्राचीन सिद्ध ऋषियों ने सिद्धि प्राप्त की थी । अपसव्येन संपीड्य पादमुलेन सादरम् । गुरुपदेशतो …

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गीता चिन्तन १

ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः। अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।। अर्थात् :- परन्तु जो भक्तजन मुझे ही परम लक्ष्य समझते हुए सब कर्मों को मुझे अर्पण करके अनन्ययोग के द्वारा मेरा ही ध्यान करते हैं।। तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्। भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।। अर्थात् :- हे पार्थ ! जिनका चित्त मुझमें ही स्थिर हुआ है …

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How HoraShastra was revealed? (According to BPHS)

HoraShastra Once sitting at a sacred place in the Himalayas, sage Maitreya asked sage Parashara. Maitreya Said: – Oh divine one! As you have revealed Smriti for the benefit of mankind in Kaliyuga, likewise, please describe the extraordinary HoraShastra from the Triskanda Jyotisha.As you are among great Astrologers, please tell me How this creation comes …

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