Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 5 || I Seek I Study

Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 5 || I Seek I Study श्रीमद्भगवद्गीता स्वाध्यायदिवस ५ श्रीकृष्ण परमात्मने नमः श्रीकृष्ण प्रीति , भगवत् प्रेम एवं कृपा प्राप्ति तथा जगत कल्याणके उद्देश्य से , मैं (अपना गोत्र और नाम), आज गीता के १० श्लोकों का पाठ कर रहा हूं । ध्यानम् :-पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन …

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Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 4 || I Seek I Study

Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 4 || I Seek I Study श्रीमद्भगवद्गीता स्वाध्यायदिवस ४ श्रीकृष्ण परमात्मने नमः श्रीकृष्ण प्रीति , भगवत् प्रेम एवं कृपा प्राप्ति तथा जगत कल्याणके उद्देश्य से , मैं (अपना गोत्र और नाम), आज गीता के १० श्लोकों का पाठ कर रहा हूं । ध्यानम् :-पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन …

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Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 3 || I Seek I Study

Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 3 || I Seek I Study श्रीमद्भगवद्गीता स्वाध्यायदिवस ३ श्रीकृष्ण परमात्मने नमः श्रीकृष्ण प्रीति , भगवत् प्रेम एवं कृपा प्राप्ति तथा जगत कल्याणके उद्देश्य से , मैं (अपना गोत्र और नाम), आज गीता के १० श्लोकों का पाठ कर रहा हूं । ध्यानम् :-पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन …

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Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 2 || I Seek I Study

Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 2 श्रीमद्भगवद्गीता स्वाध्यायदिवस २ श्रीकृष्ण परमात्मने नमः श्रीकृष्ण प्रीति , भगवत् प्रेम एवं कृपा प्राप्ति तथा जगत कल्याणके उद्देश्य से , मैं (अपना गोत्र और नाम), आज गीता के १० श्लोकों का पाठ कर रहा हूं । ध्यानम् :-पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयंव्यासेन ग्रथितां पुराणमुनिना मध्ये महाभारतं …

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Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 1 || I Seek I Study

Daily 10 verses Shrimad Bhagavad Gita reading Day 1 श्रीमद्भगवद्गीता स्वाध्यायदिवस १ श्रीकृष्ण परमात्मने नमः श्रीकृष्ण प्रीति , भगवत् प्रेम एवं कृपा प्राप्ति तथा जगत कल्याणके उद्देश्य से , मैं (अपना गोत्र और नाम), आज गीता जी के १० श्लोकों का पाठ कर रहा हूं । ध्यानम् :-पार्थाय प्रतिबोधितां भगवता नारायणेन स्वयंव्यासेन ग्रथितां पुराणमुनिना मध्ये …

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गीता चिन्तन १

ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः। अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।।12.6।। अर्थात् :- परन्तु जो भक्तजन मुझे ही परम लक्ष्य समझते हुए सब कर्मों को मुझे अर्पण करके अनन्ययोग के द्वारा मेरा ही ध्यान करते हैं।। तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्। भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।12.7।। अर्थात् :- हे पार्थ ! जिनका चित्त मुझमें ही स्थिर हुआ है …

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