वर्णविभागपूर्वक मनुष्यों की एवं समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन (महाभारत से)

वर्णविभागपूर्वक मनुष्यों की एवं समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन भृगुरुवाच। असृजद् ब्राह्मणानेव पूर्वं ब्रह्मा प्रजापतीन्।आत्मतेजोभिनिर्वृत्तान् भास्कराग्निसमप्रभान्।। १ ।। अर्थात् :- भृगु जी कहते हैं – मुने! ब्रह्माजी ने सृष्टि के प्रारंभ में अपने तेज से सूर्य के समान प्रकाशित होनेवाले ब्राह्मणों, मरीचि आदि प्रजापतियों को ही उत्पन्न किया । ततः सत्यं च धर्मं च …

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सोऽहं हंसः (शिव महापुराण से) Soham Hamsah

हे वामदेव ! अब मैं आपके स्नेहवश ‘ हंस ‘ इस पदमें स्थित इसके प्रतिलोमात्मक प्रणव मन्त्रका उद्भव कहता हूँ , आप सावधानीपूर्वक सुनें | हंस – इस मन्त्रका प्रतिलोम करनेपर ‘ सोऽहम् ‘ ( पद सिद्ध होता है । ) इसके सकार एवं हकार – इन दो वर्णोंका लोप कर देनेपर स्थूल ओंकारमात्र शेष …

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सच्चा उपवास Real Fasting

सच्चा उपवास Real Fasting महाभारत अनेक शिक्षाओं और जीवन संबंधी गूढ़ रहस्यों से भरा हुआ है जो सर्वदा जीवन को देखने का एक नया दृष्टिकोण देता है । ऐसे ही उपवास के विषय में गंगापुत्र भीष्म एवं धर्मराज युधिष्ठिर के बीच हुए वार्तालाप का एक छोटा अंश प्रस्तुत है जिससे सच्चा उपवास क्या होता है, …

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भगवती स्वधा देवी का पूजन और स्तोत्र (अर्थ सहित)

भगवती स्वधा देवी का पूजन और स्तोत्र श्रीमद्देवीभागवत के नवम स्कन्द में भगवती स्वधा देवी का दिव्य उपाख्यान एवं पूजन विधि तथा स्तोत्र का वर्णन है । स्वधा देवी ही पितरों तक कव्य पहुंचाती हैं और तृप्ति प्रदान करती हैं । आयें इस विषय का स्वाध्याय करते हैं । नारदजी बोले-  वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ हे …

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इन्द्र कृत सुरभि स्तुति (श्रीमद्देवीभागवत से)

इन्द्र कृत सुरभि स्तुति (श्रीमद्देवीभागवत से) एक समयकी बात है , वाराहकल्पमें भगवान् विष्णुकी मायासे देवी सुरभिने तीनों लोकोंमें दूध देना बन्द कर दिया , जिससे समस्त देवता आदि चिन्तित हो गये । ब्रह्मलोकमें जाकर उन्होंने ब्रह्माकी स्तुति की , तब ब्रह्माजीकी आज्ञासे इन्द्र सुरभिकी स्तुति करने लगे ॥ पुरन्दर उवाच  नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै …

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देवता और पितरों का श्राद्धान्न ग्रहण करके अजीर्ण होना और उसका निवारण संबंधी उपाख्यान (महाभारत से)

भीष्मजी कहते हैं – युधिष्ठिर ! इस प्रकार जब महर्षि निमि सबसे पहले श्राद्धमें प्रवृत्त हुए , उसके बाद सभी महर्षि शास्त्रविधिके अनुसार पितृयज्ञका अनुष्ठान करने लगे ॥ सदा धर्ममें तत्पर रहनेवाले और नियमपूर्वक व्रत धारण करनेवाले महर्षि पिण्डदान करनेके पश्चात् तीर्थके जलसे पितरोंका तर्पण भी करते थे ॥ भारत ! धीरे – धीरे चारों वर्णोंके …

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श्राद्ध में पितरों के तृप्ति विषयक वर्णन [महाभारत अनुसार]

युधिष्ठिरने पूछा- पितामह ! पितरोंके लिये दी हुई कौन – सी वस्तु अक्षय होती है ? किस वस्तुके दानसे पितर अधिक दिनतक और किसके दानसे अनन्त कालतक तृप्त रहते हैं ? भीष्मजीने कहा – युधिष्ठिर ! श्राद्धवेत्ताओंने श्राद्ध कल्पमें जो हविष्य नियत किये हैं , वे सब – के – सब काम्य हैं । मैं उनका …

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श्राद्ध में पितरों के लिये प्रदान किये गये हव्य – कव्य की प्राप्ति का विवरण [मत्स्य पुराणोक्त]

ऋषियोंने पूछा – सूतजी ! मनुष्योंको ( पितरोंके निमित्त ) हव्य और कव्य किस प्रकार देना चाहिये ? इस मृत्युलोकमें पितरोंके लिये प्रदान किये गये हव्य कव्य पितृलोकमें स्थित पितरोंके पास कैसे पहुँच जाते हैं ? यहाँ उनको पहुँचानेवाला कौन कहा गया है ? यदि मृत्युलोकवासी ब्राह्मण उन्हें खा जाता है अथवा अग्निमें उनकी आहुति दे …

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श्रीगणेशगीता में योग

वरेण्य उवाच किं सुखं त्रिषु लोकेषु देवगन्धर्वयोनिषु । भगवन् कृपया तन्मे वद विद्या विशारद ।।२०।। अर्थ:- वरेण्य बोले – भगवन् ! तीनों लोकों तथा देवता और गंधर्व आदि योनियों में यथार्थ सुख क्या है ? हे विद्याविशारद ! कृपाकर आप यह मुझसे वर्णन कीजिये ।। श्रीगजानन उवाच आनन्दमश्नुतेऽसक्तः स्वात्मारामो निजात्मनि । अविनाशि सुखं तद्धि न …

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