देवता और पितरों का श्राद्धान्न ग्रहण करके अजीर्ण होना और उसका निवारण संबंधी उपाख्यान (महाभारत से)

भीष्मजी कहते हैं – युधिष्ठिर ! इस प्रकार जब महर्षि निमि सबसे पहले श्राद्धमें प्रवृत्त हुए , उसके बाद सभी महर्षि शास्त्रविधिके अनुसार पितृयज्ञका अनुष्ठान करने लगे ॥ सदा धर्ममें तत्पर रहनेवाले और नियमपूर्वक व्रत धारण करनेवाले महर्षि पिण्डदान करनेके पश्चात् तीर्थके जलसे पितरोंका तर्पण भी करते थे ॥ भारत ! धीरे – धीरे चारों वर्णोंके …

Read more

श्राद्ध में पितरों के तृप्ति विषयक वर्णन [महाभारत अनुसार]

युधिष्ठिरने पूछा- पितामह ! पितरोंके लिये दी हुई कौन – सी वस्तु अक्षय होती है ? किस वस्तुके दानसे पितर अधिक दिनतक और किसके दानसे अनन्त कालतक तृप्त रहते हैं ? भीष्मजीने कहा – युधिष्ठिर ! श्राद्धवेत्ताओंने श्राद्ध कल्पमें जो हविष्य नियत किये हैं , वे सब – के – सब काम्य हैं । मैं उनका …

Read more

श्राद्ध में पितरों के लिये प्रदान किये गये हव्य – कव्य की प्राप्ति का विवरण [मत्स्य पुराणोक्त]

ऋषियोंने पूछा – सूतजी ! मनुष्योंको ( पितरोंके निमित्त ) हव्य और कव्य किस प्रकार देना चाहिये ? इस मृत्युलोकमें पितरोंके लिये प्रदान किये गये हव्य कव्य पितृलोकमें स्थित पितरोंके पास कैसे पहुँच जाते हैं ? यहाँ उनको पहुँचानेवाला कौन कहा गया है ? यदि मृत्युलोकवासी ब्राह्मण उन्हें खा जाता है अथवा अग्निमें उनकी आहुति दे …

Read more