गीता चिन्तन २ || Thoughts on Gita 2

Posted With permission from Original Author निम्न श्लोक के योगिक भाष्यों के ऊपर एक व्यक्तिगत चिन्तन :- अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे।प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः।।4.29।।अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति।सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः।।4.30।। अर्थात् :- अन्य (योगीजन) अपानवायु में प्राणवायु को हवन करते हैं तथा प्राण में अपान की आहुति देते हैं प्राण और अपान की गति को रोककर …

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